स्वामी जी द्वारा यज्ञोपवीत संस्कार के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए यज्ञोपवीत संस्कार वैदिक विधि विधान से बिगत वर्षों की भांति इस वर्ष भी सम्पन्न हुआ। स्वामी जी ने अपने उद्बोधन में यज्ञोपवीत-संस्कार से होने वाले लाभ के बारे बताते हुए विस्तृत चर्चा करते हुए द्विज के गलत संस्कारों का शमन करके अच्छे संस्कारों को स्थाई बनाया जाता है। गौर तलब हो कि हर वर्ष निःशुल्क यज्ञोपवीत आश्रम के स्वामी जी द्वारा कराया जाता है मनु महाराज के अनुसार यज्ञोपवीत संस्कार हुए बिना द्विज किसी कर्म का अधिकारी नहीं होता। इसी प्रकार ये संस्कार होने के बाद ही बालक को धार्मिक कार्य को करने का अधिकार मिलता है।आध्यात्मिक लाभ के साथ बैज्ञानिक लाभ भी व्यक्ति को होता है सर्वविध यज्ञ करने का अधिकार प्राप्त हो जाना ही यज्ञोपवीत है। लेकिन पश्चिमी सभ्यता के अंधानुकरण के कारण युवा वर्ग इसके महत्व से अनुभिज्ञ होने के कारण संस्कार होने के बाद भी यज्ञोपवीत धारण न करना आम बात हो गई है ।
पदम् पुराण में लिखा है कि करोड़ों जन्म के ज्ञान-अज्ञान में किए हुए पाप यज्ञोपवीत धारण करने से नष्ट हो जाते हैं। पारस्कर ग्रहसूत्र में लिखा है, जिस प्रकार इंद्र को वृहस्पति ने यज्ञोपवीत दिया था, उसी तरह आयु,बल,बुद्धि और सम्पत्ति की वृद्धि के लिए यज्ञोपवीत पहनना चाहिए। इसे धारण करने से शुद्ध चरित्र और कर्तव्य पालन की प्रेरणा मिलती है। जनेऊ तीन धागों वाला एक सूत्र होता है जिसे पुरुष अपने बाएं कंधे के ऊपर से दाईं भुजा के नीचे तक पहनते हैं। इसे देवऋण, पितृऋण और ऋषिऋण का प्रतीक माना जाता है,साथ ही इसे सत्व, रज और तम का भी प्रतीक माना गया है। यज्ञोपवीत के एक-एक तार में तीन-तीन तार होते हैं।यज्ञोपवीत के तीन लड़,सृष्टि के समस्त पहलुओं में व्याप्त त्रिविध धर्मों की ओर हमारा ध्यांन आकर्षित करते हैं। इस तरह जनेऊ नौ तारों से निर्मित होता है। ये नौ तार शरीर के नौ द्वार एक मुख, दो नासिका, दो आंख, दो कान, मल और मूत्र माने गए हैं। इसमें लगाई जाने वाली पांच गांठें ब्रह्म, धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष का प्रतीक मानी गई हैं। यही कारण है कि जनेऊ को हिन्दू धर्म में बहुत पवित्र माना गया है और इसकी शुद्धता को बनाए रखने के लिए इसके कुछ नियमों का पालन आवश्यक है।