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30 Jun 2025, Mon

“आरक्षक प्रिंस की मौत पर उठे सवाल: मिनर्वा अस्पताल की लापरवाही या लालच? हाई-प्रोफाइल केस में भी नहीं मिला इंसाफ”

रीवा जिले में स्वास्थ्य सेवाओं की सच्चाई और निजी अस्पतालों की लालची प्रवृत्ति का चौंकाने वाला चेहरा उस वक्त सामने आया जब एक गंभीर रूप से घायल पुलिस आरक्षक की जान बचाई जा सकती थी, लेकिन कथित लापरवाही और मुनाफाखोरी के चलते उसकी असमय मौत हो गई। मामला आरक्षक प्रिंस गर्ग की दुखद मृत्यु से जुड़ा है, जिन्हें ड्यूटी के दौरान थाने में एक अपराधी ने गोली मार दी थी।

प्रिंस गर्ग को गोली लगने के बाद तत्काल सतना से रीवा के संजय गांधी अस्पताल लाया गया, जहां से बाद में उन्हें मिनर्वा अस्पताल रेफर किया गया। इलाज के दौरान अस्पताल प्रबंधन ने परिजनों को लगातार आश्वस्त किया कि मरीज की हालत में सुधार हो रहा है। ऑपरेशन कर गोली निकालने की बात कही गई और इसके लिए करीब 10 लाख रुपए जमा कराए गए।

इस पूरे प्रकरण में सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि डिप्टी सीएम राजेंद्र शुक्ल और संभागीय पुलिस अधिकारी स्वयं मरीज की स्थिति की जानकारी लेने मिनर्वा अस्पताल पहुंचे थे, मगर अस्पताल प्रबंधन ने इन उच्च अधिकारियों को भी गलत जानकारी दी।

जब परिजनों को अस्पताल की कार्यप्रणाली पर संदेह हुआ, तो उन्होंने प्रिंस गर्ग को एयर एंबुलेंस द्वारा दिल्ली के एक बड़े अस्पताल में शिफ्ट कराया। वहां जांच में खुलासा हुआ कि मरीज को जरूरत से ज्यादा दवाएं दी गई थीं, जिससे उसके कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया था। डॉक्टरों ने उसे ब्रेन डेड घोषित कर दिया।

पोस्टमार्टम रिपोर्ट ने खोली पोल
दिल्ली में कराए गए पोस्टमार्टम से यह चौंकाने वाला सच सामने आया कि आरक्षक के शरीर में गोली अब भी मौजूद थी, जबकि मिनर्वा अस्पताल प्रबंधन गोली निकालने का दावा कर चुका था। इससे साफ है कि ना सिर्फ परिजनों बल्कि अधिकारियों को भी गुमराह किया गया।

परिजनों की मांग – सख्त कार्रवाई और निष्पक्ष जांच
मृतक आरक्षक के परिजन आज रीवा कलेक्ट्रेट पहुंचे और जिला प्रशासन से मांग की कि मिनर्वा अस्पताल के खिलाफ आपराधिक मामला दर्ज कर निष्पक्ष जांच कराई जाए। परिजनों का कहना है कि यदि अस्पताल प्रबंधन समय रहते यह बता देता कि मामला उनके नियंत्रण से बाहर है, तो समय पर बेहतर इलाज संभव होता और प्रिंस की जान बच सकती थी।

कई सवालों के घेरे में मिनर्वा अस्पताल
इस हृदयविदारक घटना ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि जब एक हाई-प्रोफाइल सरकारी कर्मचारी के मामले में इस तरह की लापरवाही बरती जा सकती है, तो आमजन के साथ क्या व्यवहार होता होगा?

सरकार और स्वास्थ्य विभाग से उम्मीद की जा रही है कि इस प्रकरण को उदाहरण बनाकर ऐसे निजी अस्पतालों पर सख्त कार्रवाई की जाए, जो पैसे के लिए इंसानी जान से खिलवाड़ करते हैं।

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