मानपुर (उमरिया)
1. मार्ग की खराब स्थिति
- मानपुर से ब्योहारी जाने वाला मुख्य मार्ग अत्यंत जर्जर स्थिति में है।
- कई स्थानों पर डामर पूरी तरह उखड़ चुका है।
- सड़क पर बड़े-बड़े गड्ढे हैं, जिससे यह पहचानना मुश्किल हो गया है कि गड्ढे में सड़क है या सड़क में गड्ढा।
2. निर्माण के समय ही गुणवत्ता पर उठे थे सवाल
- स्थानीय निवासियों ने निर्माण कार्य की गुणवत्ता पर पहले ही सवाल उठाए थे।
- एमपीआरडीसी (MPRDC) रीवा डिवीजन द्वारा उदित इंफ्रा कंस्ट्रक्शन को निर्माण कार्य सौंपा गया था।
- निर्माण कार्य में भारी गड़बड़ियां की गईं, जिससे सड़क कुछ ही महीनों में खराब हो गई।
3. आए दिन हो रही हैं दुर्घटनाएं
- खराब सड़क की वजह से वाहन चालकों और पैदल यात्रियों को परेशानी हो रही है।
- स्कूली बच्चों, बुजुर्गों और साइकिल सवारों को विशेष रूप से खतरे का सामना करना पड़ रहा है।
- बारिश में पानी भरने से गड्ढे दिखाई नहीं देते, जिससे लोग गिरकर घायल हो रहे हैं।
4. प्रशासन और विभाग की लापरवाही
- जिम्मेदार विभाग और ठेकेदार मेंटेनेंस की ओर ध्यान नहीं दे रहे हैं।
- जनता की शिकायतों के बावजूद कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया।
5. साइन बोर्ड भी खराब स्थिति में
- बस स्टैंड मानपुर पर लगा साइन बोर्ड पूरी तरह से क्षतिग्रस्त हो चुका है।
- रेडियम से लिखे शहरों के नाम और दूरी मिट चुके हैं, जिससे यात्रियों को परेशानी होती है।
- रात में सही दिशा न पता होने के कारण राहगीर रास्ता भटक जाते हैं।
6. नागरिकों की मांग
- नागरिकों ने जिला कलेक्टर श्री धरणेंद्र जैन से इस मामले की उच्चस्तरीय जांच की मांग की है।
- दोषी ठेकेदार पर जुर्माना लगाकर राशि वसूलने तथा दंडात्मक कार्रवाई करने की मांग उठाई गई है।
7. अधिकारी का बयान
“मेरी पदस्थापना अभी हाल ही में हुई है, मामला संज्ञान में आया है। इसकी जानकारी लेकर जल्द सुधार कार्य कराने का प्रयास करूंगा।” — श्री तनु वे, डीएम, एमपीआरडीसी रीवा डिवीजन
जनता करदाता है, और उसे बुनियादी सुविधाओं के लिए लड़ना न पड़े—यह प्रशासन की जिम्मेदारी है, अहसान नहीं।
संपादकीय टिप्पणी:
सड़कों की हालत—जनता की पीड़ा, व्यवस्था की चूक
मानपुर से ब्योहारी तक की सड़क की जर्जर हालत सिर्फ एक निर्माण परियोजना की विफलता नहीं है, बल्कि यह हमारी प्रशासनिक और जवाबदेही की व्यवस्था की गंभीर खामी को उजागर करती है। एक ओर जहां स्थानीय नागरिकों ने निर्माण के समय ही गुणवत्ता पर सवाल उठाए थे, वहीं दूसरी ओर विभागीय अधिकारियों और ठेकेदारों ने उन आशंकाओं को नजरअंदाज कर दिया।
आज हालत यह है कि सड़क में गड्ढे नहीं, बल्कि गड्ढों में कहीं-कहीं सड़क बची है। आए दिन हो रही दुर्घटनाएं, स्कूली बच्चों और बुजुर्गों की जान पर बन आना, और यात्रियों को साइन बोर्ड के अभाव में भटकना—ये सब दर्शाते हैं कि यह सिर्फ एक सड़क का मुद्दा नहीं, बल्कि मानव जीवन की उपेक्षा का मामला है।
जिस तरह निर्माण के चंद महीनों में ही सड़क खराब हुई, वह ठेकेदार की लापरवाही और विभाग की मिलीभगत की ओर साफ इशारा करता है। यदि समय रहते शिकायतों पर ध्यान दिया जाता, तो शायद इतनी दुर्घटनाएं और असुविधा टाली जा सकती थीं।
अब जबकि डीएम, एमपीआरडीसी ने सुधार कार्य का आश्वासन दिया है, उम्मीद है कि यह आश्वासन सिर्फ बयानबाजी तक सीमित नहीं रहेगा। ज़रूरत इस बात की है कि इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच हो, दोषियों को दंडित किया जाए, और भविष्य में निर्माण कार्यों की पारदर्शिता व गुणवत्ता की सख्त निगरानी की जाए।