चितरंगी (सिंगरौली)।
वन संपदा की लूट पर चितरंगी पुलिस ने बड़ी कार्रवाई करते हुए बीती रात एक खैर लकड़ी से लदे ट्रक को जब्त किया। यह कार्रवाई थाना प्रभारी की अगुवाई में गुप्त सूचना के आधार पर की गई। ट्रक में लाखों रुपये की क़ीमती खैर लकड़ी भरी थी। दबिश के दौरान ट्रक चालक अंधेरे का लाभ उठाकर भाग निकला, जिसकी तलाश जारी है वन विभाग पर सवालों की बौछार:क्या सिर्फ काग़ज़ी पहरेदार बन चुका है वन अमला? यह पहली बार नहीं है जब खैर तस्करी को लेकर इलाके में शोर मचा हो। स्थानीय ग्रामीणों के मुताबिक़, इसी रूट से पिछले दो हफ्तों में कम से कम तीन बार लकड़ी से भरे ट्रक निकलते देखे गए। सवाल उठता है—यदि ग्रामीण यह जानते हैं, तो फिर वन विभाग की चौकियों पर सन्नाटा क्यों है? क्या यह अनदेखी है या मौन सहमति? डीएफ़ओ की भूमिका पर उठे सवाल स्थानीय समाजसेवियों ने तंज कसते हुए कहा—“पौधारोपण में रिबन काटना और सोशल मीडिया पर सेल्फी डालना ही अब DFO की ड्यूटी बन गई है?”जब जंगल कटता है, तब विभागीय जिम्मेदार या तो ग़ायब रहते हैं या फिर अनजान बने रहते हैं पुलिस की कार्रवाई बनी नज़ीर चितरंगी पुलिस ने न सिर्फ़ ट्रक जब्त किया बल्कि संबंधित धाराओं में मामला दर्ज कर लिया। थाना प्रभारी ने साफ कहा,”जंगल की लूट करने वालों को बख्शा नहीं जाएगा। चाहे वन विभाग सहयोग करे या नहीं, पुलिस अपना काम करती रहेगी।”कटघरे में वन विभाग ग्रामीणों और जागरूक नागरिकों का कहना है कि जब पेड़ों की आरी जंगल में गूंज रही थी, तब DFO साहब कहां थे? सरकारी आंकड़ों में हर साल करोड़ों पौधे लगाने का दावा किया जाता है। अख़बारों में हरियाली की तस्वीरें छपती हैं, मगर असल जंगल जब कटता है, तो ज़िम्मेदार अफ़सरों की ज़ुबान क्यों बंद हो जाती है? सवाल सीधा है: अगर पुलिस लकड़ी तस्करी पर कार्रवाई कर सकती है, तो क्या जंगल की रखवाली के नाम पर तनख्वाह ले रहे अफ़सर आंखें मूंदे रहेंगे?क्या अब हमें यह मान लेना चाहिए कि ‘मौन’ ही अब मिश्रित सहभागिता की नई भाषा है?चितरंगी पुलिस की सख़्ती स्वागत योग्य है — पर क्या हम यही सख़्ती जंगल के असली ‘रक्षकों’ से भी नहीं चाहते?
खैर माफिया पर पुलिस का शिकंजा, वन विभाग की नाकामी उजागर-क्या DFO की भूमिका सिर्फ़ पौधारोपण की सेल्फी तक सीमित है?
