चितरंगी क्षेत्र में आजीविका मिशन से जुड़ी आर्थिक अनियमितताएँ सिर्फ धन की हेराफेरी का मामला नहीं हैं, बल्कि यह घटना ग्रामीण विकास और महिला सशक्तिकरण की आत्मा को चोट पहुँचाने वाली है जिन योजनाओं का मकसद था ज़रूरतमंद महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाना, वे अब भ्रष्टाचार और प्रशासनिक लापरवाही की भेंट चढ़ रही हैं फर्जी खातों में पैसा, असली हितग्राही वंचित सरकारी दस्तावेज़ों में जिन महिलाओं के नाम पर ऋण और सहायता दिखाई गई, उन तक वास्तविक लाभ पहुँचा ही नहीं इस धन का गमन फर्जी खातों में हुआ, जो न केवल आपराधिक कृत्य है, बल्कि लोकतंत्र और लोक-कल्याणकारी राज्य की मूल भावना के खिलाफ है प्रशासन की चुप्पी और जवाबदेही का अभाव सबसे दुखद पक्ष यह है कि मीडिया रिपोर्ट्स और स्थानीय जनप्रतिनिधियों की आपत्ति के बावजूद अभी तक कोई ठोस कार्रवाई नहीं हुई है यह प्रशासन की निष्क्रियता और जिम्मेदारी से बचने की प्रवृत्ति को दर्शाता है केवल जांच की मांग करने से बात नहीं बनेगी; कार्रवाई ज़रूरी है अब जरूरी है-पारदर्शिता, सख्ती और जवाबदेही इस पूरे मामले की निष्पक्ष जांच होनी चाहिए, दोषियों को पहचान कर कड़ी सजा दी जानी चाहिए साथ ही ज़रूरी है कि भविष्य में ऐसी घटनाएँ न दोहराई जाएँ, इसके लिए निगरानी तंत्र को तकनीकी और सामाजिक रूप से अधिक पारदर्शी और मजबूत बनाया जाए निष्कर्ष अगर आज हम चुप रहे, तो आने वाले समय में न सिर्फ योजनाओं की विश्वसनीयता खत्म होगी, बल्कि ज़मीनी स्तर पर बदलाव की जो उम्मीदें हैं, वे भी धूमिल हो जाएँगी शासन को अब जवाबदेह बनना ही होगा विशेष टिप्पणी चितरंगी में उजागर हुआ यह घोटाला केवल वित्तीय भ्रष्टाचार का मामला नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी व्यवस्था पर चोट है जो समाज के सबसे कमजोर वर्गों को सशक्त बनाने का दावा करती है यदि इस पर समय रहते कठोर कदम नहीं उठाए गए, तो इससे न केवल योजनाओं की विश्वसनीयता खत्म होगी,बल्कि ग्रामीण समाज में सरकार की नीयत पर भी प्रश्नचिन्ह लगेगा अब वक्त है कि शासन पारदर्शिता और जवाबदेही की दिशा में ठोस कार्यवाही करे
