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16 Jul 2025, Wed

सिंगरौली की रेण नदी में धड़ल्ले से हो रहा अवैध रेत उत्खनन, प्रशासन की निष्क्रियता पर उठे सवाल?


सिंगरौली, मध्य प्रदेश।
सिंगरौली जिले के बैढ़न थाना अंतर्गत वार्ड क्रमांक 38 स्थित तुलसी वार्ड बलियरी में इन दिनों रेण नदी से अवैध रेत उत्खनन और परिवहन का खेल खुलेआम खेला जा रहा है। यह अवैध कारोबार ऐसे समय पर जोरों पर है जब जिला प्रशासन सिंगरौली महोत्सव की तैयारियों और आयोजनों में व्यस्त है। इसी का फायदा उठाते हुए रेत माफिया प्रशासन की आंखों में धूल झोंककर अवैध कारोबार को अंजाम दे रहे हैं।

प्रशासनिक सुस्ती बनी अवैध उत्खनन का आधार
स्थानीय सूत्रों की मानें तो बलियरी क्षेत्र में प्रतिदिन 15 से 20 ट्रैक्टरों के जरिए अवैध रेत की ढुलाई की जा रही है। रेत कारोबारी बेखौफ होकर रात के अंधेरे में सैकड़ों ट्रैक्टरों से रेत का परिवहन कर रहे हैं। खनिज विभाग और पुलिस प्रशासन की निष्क्रियता से अवैध कारोबारी न केवल पर्यावरण को नुकसान पहुँचा रहे हैं, बल्कि शासन को मिलने वाली रॉयल्टी के लाखों रुपये के राजस्व की भी हानि हो रही है।

भविष्य की भारी कीमत चुकानी पड़ सकती है
स्थानीय नागरिकों का कहना है कि कुछ माफिया रेत को एकत्र कर मानसून के दौरान ऊँचे दामों में बेचने की तैयारी कर रहे हैं। यदि समय रहते कार्रवाई नहीं हुई, तो यह अवैध भंडारण और अधिक बड़े पैमाने पर नुकसान पहुंचा सकता है। इससे पर्यावरणीय असंतुलन और संभावित दुर्घटनाओं का खतरा भी बना रहेगा।

जनता ने उठाई कार्रवाई की मांग
बलियरी क्षेत्र के निवासियों ने जिला कलेक्टर और पुलिस अधीक्षक से तत्काल हस्तक्षेप की मांग की है। लोगों का कहना है कि यदि समय पर कार्रवाई नहीं हुई तो अवैध कारोबारियों के हौसले और बुलंद होंगे और शासन की छवि धूमिल होगी।

क्या कहता है प्रशासन?
इस मामले में फिलहाल प्रशासन या पुलिस की ओर से कोई आधिकारिक बयान नहीं आया है, लेकिन सवाल यह है कि जब यह सब कुछ स्थानीय स्तर पर सबको ज्ञात है, तो संबंधित अधिकारी क्यों चुप हैं?

क्या एसपी लेंगे संज्ञान?
अब देखना यह होगा कि सिंगरौली जिले के पुलिस अधीक्षक इस मामले में स्वतः संज्ञान लेकर त्वरित कार्रवाई करते हैं या फिर रेत माफिया यूँ ही कानून की धज्जियाँ उड़ाते रहेंगे।

विशेष टिप्पणी,


रेत के नाम पर लुटती नदी, सोता प्रशासन

सिंगरौली की रेण नदी में अवैध रेत उत्खनन की जो खबर सामने आई है, वह न केवल एक पर्यावरणीय संकट का संकेत है, बल्कि प्रशासनिक उदासीनता की चुभती हुई मिसाल भी पेश करती है। जब खनिज संपदा का दोहन कानून के बाहर जाकर, स्थानीय प्रशासन की चुप्पी और लापरवाही के बीच होता है, तो यह सवाल उठाना लाजिमी है कि आख़िर जिम्मेदार कौन है?

रेण नदी में हो रहा अवैध उत्खनन कोई छिपा हुआ रहस्य नहीं है। यह ऐसा कृत्य है जिसे आम नागरिक देख रहा है, जान रहा है और जिसके दुष्परिणामों से भयभीत भी है। लेकिन जिन संस्थानों और अधिकारियों को इस पर कार्रवाई करनी चाहिए, वे या तो व्यस्त हैं, या फिर जान-बूझकर आंखें मूंदे हुए हैं।

अवैध रेत खनन केवल एक आर्थिक अपराध नहीं है; यह प्रकृति के साथ किया जा रहा गंभीर खिलवाड़ है। हर एक ट्रैक्टर जो रात के अंधेरे में रेण नदी की छाती से रेत खींचता है, वह एक पारिस्थितिकी तंत्र को कमजोर करता है। भूजल स्तर, नदियों की धारा, जैवविविधता — सब कुछ इस लालच की बलि चढ़ रहा है।

आश्चर्य की बात यह है कि यह सब कुछ उस समय हो रहा है जब जिला प्रशासन ‘सिंगरौली महोत्सव’ जैसे सांस्कृतिक आयोजनों में व्यस्त है। क्या एक उत्सव की तैयारी इतनी बड़ी हो सकती है कि वह कानून-व्यवस्था और पर्यावरण संरक्षण जैसे बुनियादी कर्तव्यों पर पर्दा डाल दे?

स्थानीय नागरिकों की चिंता जायज़ है। यदि यह कारोबार ऐसे ही चलता रहा, तो न केवल शासन को भारी आर्थिक क्षति होगी, बल्कि कानून का भय समाप्त हो जाएगा — और यह किसी भी लोकतंत्र के लिए शुभ संकेत नहीं है।

यह समय है कि जिला प्रशासन और पुलिस, दोनों ही विभाग अपने कर्तव्यों का स्मरण करें। उन्हें चाहिए कि वे न केवल इस अवैध खनन पर तुरंत अंकुश लगाएं, बल्कि इसमें लिप्त तत्वों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करें, ताकि एक उदाहरण स्थापित हो।

रेत माफिया अगर प्रशासन से तेज़ निकले, तो यह न केवल पर्यावरण का नुकसान है, बल्कि राज्य की साख और व्यवस्था की असफलता भी है। और जब सवाल ‘प्रकृति बनाम मुनाफा’ का हो, तो हर जिम्मेदार शासन को यह तय करना होगा कि वह किसके साथ खड़ा है।



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