शिक्षा और मध्यान्ह भोजन के नाम पर छलावा! सुदी स्कूल की हकीकत ने खोली व्यवस्था की पोल


1. “स्कूल में नहीं शिक्षक, थाली में नहीं सब्ज़ी — बैगा बच्चों के भविष्य से कैसा मज़ाक?”
2.“मध्यान्ह भोजन योजना बनी मज़ाक, बच्चे बोले — ट्यूशन मास्टर आए थे और चले गए”

रिपोर्ट: अमन सिंह | सिंगरौली / चितरंगी

चितरंगी। शिक्षा के अधिकार और पोषण की योजनाओं के नाम पर सरकार जहाँ बड़ी-बड़ी बातें करती है, वहीं सुदा संकुल केंद्र अंतर्गत प्राथमिक शिक्षा गारंटी शाला सुदी की हकीकत इस पूरे तंत्र की सच्चाई उजागर कर रही है।

मंगलवार को दोपहर 11 बजे जब पत्रकारों का दल विद्यालय पहुँचा, तो वहाँ एक भी शिक्षक मौजूद नहीं था।
टीम ने 12 बजे तक इंतजार किया, लेकिन कोई शिक्षक स्कूल नहीं पहुँचा।




🚨 प्रधानाध्यापक की बहू बताई जा रही “अतिथि शिक्षिका” कभी स्कूल नहीं आईं

जानकारी के मुताबिक विद्यालय में पदस्थ अतिथि शिक्षिका प्रधानाध्यापक की बहू हैं, जो आज तक विद्यालय नहीं आईं।
उनकी जगह भाड़े का टीचर रखा गया है, जो मौके पर गैरहाजिर मिला।
बच्चों ने बताया — “ट्यूशन मास्टर आए थे और चले गए।”




🍚 मध्यान्ह भोजन योजना में भी लापरवाही

विद्यालय में अध्ययनरत अधिकतर बच्चे बैगा जनजाति के हैं — जो सामाजिक रूप से अत्यंत पिछड़ा वर्ग है।
इन बच्चों को मध्यान्ह भोजन में केवल चावल और दाल परोसी जाती है, सब्जी का नामोनिशान नहीं।

जब रसोईया से दाल के बारे में पूछा गया, तो वह स्वयं नहीं बता सकीं कि कौन सी दाल पकाई जा रही है।
यह न सिर्फ हास्यास्पद, बल्कि गंभीर प्रशासनिक लापरवाही है।




🧩 सवालों के घेरे में शिक्षा विभाग की मॉनिटरिंग

जनशिक्षक और संकुल प्राचार्य आखिर कहाँ हैं?

शिक्षा विभाग की मॉनिटरिंग सिर्फ कागजों पर क्यों सीमित है?

मध्यान्ह भोजन योजना का बजट आखिर जाता कहाँ है?





🧒 आदिवासी बच्चों के साथ अन्याय

बैगा समाज के इन मासूम बच्चों के साथ यह सीधा-सीधा अन्याय है —
शिक्षा, पोषण और भविष्य—तीनों के साथ खिलवाड़।
यह सिर्फ एक विद्यालय की कहानी नहीं, बल्कि उस व्यवस्था का आईना है जहाँ जिम्मेदारी का अभाव और प्रशासनिक उदासीनता बच्चों का भविष्य निगल रही है।




⚖️ कार्रवाई की माँग

प्रशासन से मांग है कि तत्काल जांच कर जिम्मेदार शिक्षकों एवं अधिकारियों पर कठोर कार्रवाई की जाए।
शिक्षा और पोषण जैसी संवेदनशील योजनाओं में इस तरह की लापरवाही एक गंभीर अपराध से कम नहीं।
जब तक ऐसे मामलों पर सख्त कार्यवाही नहीं होती, यह छलावा मासूम बच्चों के जीवन से खेलता रहेगा।

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