पंचायत सचिव पर 20 हजार रुपये गबन का आरोप, शिकायतकर्ता ने लगाई सुरक्षा की गुहार

सिंगरौली/चितरंगी।
चितरंगी थाना क्षेत्र की ग्राम पंचायत पोड़ी द्वितीय में पंचायत सचिव पर गंभीर वित्तीय अनियमितता और धमकी देने का आरोप लगा है। ग्रामवासी गीता प्रसाद जायसवाल ने पंचायत सचिव लालबहादुर जायसवाल पर ₹20,000 की गबन का आरोप लगाते हुए थाना प्रभारी को आवेदन सौंपा है।

शिकायत के अनुसार, गीता प्रसाद ने अपने पिता लालता प्रसाद जायसवाल के नाम स्वीकृत कूप निर्माण योजना के तहत मिट्टी खुदाई का कार्य स्वयं अपने खर्च पर कराया था। लेकिन आरोप है कि सचिव ने अपने पद का दुरुपयोग करते हुए, कार्य का भुगतान अपनी पत्नी शिवकली जायसवाल के नाम से दर्शाते हुए ₹20,000 की राशि आहरित कर ली।

गीता प्रसाद ने जब सचिव से उक्त राशि लौटाने की मांग की, तो सचिव ने कथित रूप से गाली-गलौज करते हुए जान से मारने की धमकी दी। पीड़ित ने खुद को असुरक्षित बताते हुए पुलिस से सुरक्षा प्रदान करने और सचिव के विरुद्ध सख्त कार्रवाई की मांग की है।

सूत्रों की मानें तो सचिव द्वारा पंचायत निधि से तीन मोबाइल फोन खरीदे जाने की बात भी सामने आ रही है। हालांकि इस संबंध में अभी तक कोई आधिकारिक पुष्टि नहीं हुई है, लेकिन जांच की संभावना जताई जा रही है।

अब देखना यह होगा कि पुलिस प्रशासन इस गंभीर प्रकरण में क्या कदम उठाता है। क्या पीड़ित को मिलेगा न्याय, या यह मामला भी कागज़ी कार्यवाही में सिमटकर रह जाएगा — इसका जवाब आने वाला वक्त देगा।

संपादकीय टिप्पणी:

“ग्राम स्वराज की नींव हिलाते भ्रष्टाचार के दीमक”

गांधीजी का सपना था – ग्राम स्वराज, जहाँ प्रत्येक गांव आत्मनिर्भर हो, पारदर्शी हो और जनकल्याण के कार्यों में जनता की भागीदारी हो। लेकिन वर्तमान परिप्रेक्ष्य में यदि गांवों की हकीकत देखी जाए, तो यह सपना अब काग़ज़ों तक ही सीमित रह गया है।

ग्राम पंचायतें, जो ग्रामीण विकास की आधारशिला मानी जाती हैं, आज भ्रष्टाचार की चरम सीमा को छू रही हैं। पोड़ी द्वितीय पंचायत का हालिया मामला इसका जीवंत उदाहरण है, जहाँ सचिव पर केवल ₹20,000 की गबन ही नहीं, बल्कि धमकी देने जैसे गंभीर आरोप भी लगे हैं। यह न केवल जनधन की लूट है, बल्कि ग्रामीणों की मेहनत और विश्वास के साथ किया गया धोखा भी है।

चिंता की बात यह है कि ऐसे मामलों में जांच की प्रक्रिया अक्सर धीमी पड़ जाती है या राजनीतिक दबाव में मामला ठंडे बस्ते में चला जाता है। ऐसे में पीड़ित को न्याय मिलना तो दूर, वह खुद को और अधिक असुरक्षित महसूस करने लगता है।

यह घटना किसी एक गांव की कहानी नहीं है, बल्कि सैकड़ों पंचायतों में व्याप्त उस व्यवस्थित भ्रष्टाचार का हिस्सा है, जहाँ विकास कार्यों के नाम पर केवल बिल लगाए जाते हैं, ज़मीनी हकीकत कुछ और होती है।

आज ज़रूरत है कि पंचायतों की ऑडिट प्रक्रिया को मजबूत, जन शिकायत निवारण प्रणाली को सक्रिय, और जवाबदेही तय करने की सख्त व्यवस्था लागू की जाए। इसके साथ ही भ्रष्टाचार में लिप्त कर्मचारियों पर शीघ्र कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिए, ताकि गांवों का विश्वास तंत्र फिर से बहाल हो सके।

यदि अभी भी इस पर गंभीरता से कार्रवाई नहीं की गई, तो यह दीमक की तरह लोकतंत्र की सबसे निचली इकाई – ग्राम पंचायत को खोखला कर देगा।

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